राजस्थान का इतिहास अनेक वीरों की भूमि रहा हैं।आज़ादी के समय भी यहाँ का इतिहास गौरवपूर्ण रहा हैं।पढ़िए आज ऐसे ही एक अनसुने बलिदान की कहानी......
चंद्रशेखर आजाद के आत्म बलिदान से नवयुवकों में नवीन प्रेरणा जागी। भगत सिंह के हँसते हसते फांसी को गले लगाने से सभी नवयुवकों प्रेरणा स्रोत बन गए। ऐसे ही बलिदानी वीरो से प्रभावित होकर देश की कोने कौने में क्रांति की चिंगारी ने विशाल रुप धारण कर लिया। सन 1934तक राजस्थान का अजमेर शहर भी क्रांतिकारियों की गतिविधियों का केंद्र बन चुका था। माणिक्य लाल वर्मा ,रामचंद्र ,केशरी सिंह बारहट, विजय सिंह पथिक आदि क्रांतिकारियों ने अंग्रेज अधिकारियों की रात की नींद को हर लिया था।
शंभू नारायण अभी मात्र 14 वर्ष का ही बालक था फिर भी अंग्रेजों के प्रति कटुता उसमें कूट-कूट कर भरी थी। वह क्रांतिवीरों के संपर्क में आया और उनके साथ सहयोग करने लगा। क्रांतिकारी साहित्य, गुप्त सूचनाएं वह अपने दल के सहयोगियों को बड़ी चतुरता के साथ पहुंचाता था। ढल को उस पर पूर्ण विश्वास था । इसी के साथ गोला बारुद भी उसे एक से दूसरी जगह भेजने का काम सौंप दिया गया था। अल्प आयु होने के कारण पुलिस भी उस पर संदेह नहीं कर पाती थी लेकिन अजमेर पुलिस को यह गुप्त सूचना मिली चुकी थी की एक स्कूल छात्र क्रांतिकारियों की मदद कर रहा है।
नर हर सिंह बापट ने मजिस्ट्रेट कार्यालय में इंस्पेक्टर जनरल गिब्सन को गोली मार दी। इसी प्रकार अजमेर में आए दिन अंग्रेज अधिकारियों के हत्या हो रही थी। अतः इस स्थिति से निपटने के लिए दिल्ली से खुफिया एजेंसी के dsp मिस्टर प्राणनाथ डोगरा को स्थानांतरित कर के अजमेर लाया गया। डॉग रानी कांति वीरों को पकड़ने की योजना बनाई और उधर अजमेर के क्रांतिकारियों ने डोगरा के हत्या की योजना बनाई। इस हत्या के लिए कामरेड राम सिंह और मांगीलाल को चुना गया। इन दोनों का संपर्क सूत्र बालक शंभू नारायण ही बना। शंभू नारायण क्रांतिकारियों की सभा में उपस्थित होता था और कामरेड राम सिंह और मांगीलाल को गुप्त रूप से हथ गोले तथा अन्य हथियार पहुंचाता था।
क्रांतिवीरों ने डोगरा डोगरा परिवार रखना प्रारंभ कर दिया एक दिन जब डोगरा सिनेमा देखने गया हुआ था तब पीछे से क्रांतिवीरों ने योजना बनाई कि आज इसे समाप्त कर देंगे। सिनेमा के बाहर यह लोग एक होटल में खाना खाने के बहाने ठहर गए और उधर शंभू नारायण सिनेमा के गेट के बाहर डोगरा का इंतजार करने के लिए खड़ा हो गया जैसे ही डोगरा सिनेमा देख कर बाहर निकला शंभू नारायण ने होटल में बैठे क्रांतिकारियों को इशारा कर दिया और तभी राम सिंह ने गोलियों की बौछार डोगरा पर कर दी लेकिन भीड़ अधिक होने के कारण डोगरा को अधिक गोलियां नहीं लग सकी और वह घायल हो गया। इस्पेक्टर डोगरा के साथ एक अन्य इंस्पेक्टर भी था जो कि मारा गया। हमला करने वालों ने भागने का प्रयास किया लेकिन वे पकडे गए।
पकडे गए क्रांतिकारियों की केस में मदद करने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा था क्योंकि सभी पुलिस के मामले से डरते थे। मथुरा से मुकुट बिहारी लाल भार्गव ने धन की विशेष सहायता दी। साथ ही मथुरा से रामजीदास गुप्ता और शिवशंकर उपाध्याय धन का प्रबंध करके अजमेर पहुंचे इन तीनों ने ही पकडे क्रांतिकारियों की मदद के लिए वकील की व्यवस्था की।
पुलिस ने बालक शंभू नारायण को भी पकड़ लिया था और उडने विश्वास था कि इस बालक की मदद से व अन्य क्रांतिकारियों के नाम और पते को भी जान लेंगे। इसी कारण बालक को कठोर से कठोर यातनाएं दी गई यथा पिटाई करना ,लोहे से दागना, बर्फ की सिल्ली पर लेटाना आदी तरह तरह की यातनाएं दी गयी। लेकिन बालक निरंतर कठोर और कठोर होता गया जब यातनाओं से काम नहीं चला तो बालक को विभिन्न तरह के प्रलोभन दिए गए इस पर बालक का एक ही जवाब था यह सब स्वतंत्रता से अधिक कीमती थोड़ी है।
सारे प्रयास असफल होता देख पुलिस ने उसेे पुनःसलाखों के पीछे डाल दिया इतनी सारी यातनाओं से बालक का शरीर असहनीय दर्द का शिकार हो चुका था लेकिन फिर भी बालक को इस बात की बैठा थी कि कहीं वह दर्द से बचने के लिए क्रांतिकारियों के भेजने खोल दे अतः इस स्थिति से बचने के लिए उसने सोचा कि अब यह शरीर तो बेकार हो ही चुका है क्यों न भ खुद ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर ले।
अगले दिन जेल की कोठरी में बालक शंभू नारायण मृत पाया गया मात्र 14 वर्ष की आयु में अपना बलिदान देकर बालक ने आत्म बलिदान का अनूठा उदाहरण पेश किया।
चंद्रशेखर आजाद के आत्म बलिदान से नवयुवकों में नवीन प्रेरणा जागी। भगत सिंह के हँसते हसते फांसी को गले लगाने से सभी नवयुवकों प्रेरणा स्रोत बन गए। ऐसे ही बलिदानी वीरो से प्रभावित होकर देश की कोने कौने में क्रांति की चिंगारी ने विशाल रुप धारण कर लिया। सन 1934तक राजस्थान का अजमेर शहर भी क्रांतिकारियों की गतिविधियों का केंद्र बन चुका था। माणिक्य लाल वर्मा ,रामचंद्र ,केशरी सिंह बारहट, विजय सिंह पथिक आदि क्रांतिकारियों ने अंग्रेज अधिकारियों की रात की नींद को हर लिया था।
शंभू नारायण अभी मात्र 14 वर्ष का ही बालक था फिर भी अंग्रेजों के प्रति कटुता उसमें कूट-कूट कर भरी थी। वह क्रांतिवीरों के संपर्क में आया और उनके साथ सहयोग करने लगा। क्रांतिकारी साहित्य, गुप्त सूचनाएं वह अपने दल के सहयोगियों को बड़ी चतुरता के साथ पहुंचाता था। ढल को उस पर पूर्ण विश्वास था । इसी के साथ गोला बारुद भी उसे एक से दूसरी जगह भेजने का काम सौंप दिया गया था। अल्प आयु होने के कारण पुलिस भी उस पर संदेह नहीं कर पाती थी लेकिन अजमेर पुलिस को यह गुप्त सूचना मिली चुकी थी की एक स्कूल छात्र क्रांतिकारियों की मदद कर रहा है।
नर हर सिंह बापट ने मजिस्ट्रेट कार्यालय में इंस्पेक्टर जनरल गिब्सन को गोली मार दी। इसी प्रकार अजमेर में आए दिन अंग्रेज अधिकारियों के हत्या हो रही थी। अतः इस स्थिति से निपटने के लिए दिल्ली से खुफिया एजेंसी के dsp मिस्टर प्राणनाथ डोगरा को स्थानांतरित कर के अजमेर लाया गया। डॉग रानी कांति वीरों को पकड़ने की योजना बनाई और उधर अजमेर के क्रांतिकारियों ने डोगरा के हत्या की योजना बनाई। इस हत्या के लिए कामरेड राम सिंह और मांगीलाल को चुना गया। इन दोनों का संपर्क सूत्र बालक शंभू नारायण ही बना। शंभू नारायण क्रांतिकारियों की सभा में उपस्थित होता था और कामरेड राम सिंह और मांगीलाल को गुप्त रूप से हथ गोले तथा अन्य हथियार पहुंचाता था।
क्रांतिवीरों ने डोगरा डोगरा परिवार रखना प्रारंभ कर दिया एक दिन जब डोगरा सिनेमा देखने गया हुआ था तब पीछे से क्रांतिवीरों ने योजना बनाई कि आज इसे समाप्त कर देंगे। सिनेमा के बाहर यह लोग एक होटल में खाना खाने के बहाने ठहर गए और उधर शंभू नारायण सिनेमा के गेट के बाहर डोगरा का इंतजार करने के लिए खड़ा हो गया जैसे ही डोगरा सिनेमा देख कर बाहर निकला शंभू नारायण ने होटल में बैठे क्रांतिकारियों को इशारा कर दिया और तभी राम सिंह ने गोलियों की बौछार डोगरा पर कर दी लेकिन भीड़ अधिक होने के कारण डोगरा को अधिक गोलियां नहीं लग सकी और वह घायल हो गया। इस्पेक्टर डोगरा के साथ एक अन्य इंस्पेक्टर भी था जो कि मारा गया। हमला करने वालों ने भागने का प्रयास किया लेकिन वे पकडे गए।
पकडे गए क्रांतिकारियों की केस में मदद करने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा था क्योंकि सभी पुलिस के मामले से डरते थे। मथुरा से मुकुट बिहारी लाल भार्गव ने धन की विशेष सहायता दी। साथ ही मथुरा से रामजीदास गुप्ता और शिवशंकर उपाध्याय धन का प्रबंध करके अजमेर पहुंचे इन तीनों ने ही पकडे क्रांतिकारियों की मदद के लिए वकील की व्यवस्था की।
पुलिस ने बालक शंभू नारायण को भी पकड़ लिया था और उडने विश्वास था कि इस बालक की मदद से व अन्य क्रांतिकारियों के नाम और पते को भी जान लेंगे। इसी कारण बालक को कठोर से कठोर यातनाएं दी गई यथा पिटाई करना ,लोहे से दागना, बर्फ की सिल्ली पर लेटाना आदी तरह तरह की यातनाएं दी गयी। लेकिन बालक निरंतर कठोर और कठोर होता गया जब यातनाओं से काम नहीं चला तो बालक को विभिन्न तरह के प्रलोभन दिए गए इस पर बालक का एक ही जवाब था यह सब स्वतंत्रता से अधिक कीमती थोड़ी है।
सारे प्रयास असफल होता देख पुलिस ने उसेे पुनःसलाखों के पीछे डाल दिया इतनी सारी यातनाओं से बालक का शरीर असहनीय दर्द का शिकार हो चुका था लेकिन फिर भी बालक को इस बात की बैठा थी कि कहीं वह दर्द से बचने के लिए क्रांतिकारियों के भेजने खोल दे अतः इस स्थिति से बचने के लिए उसने सोचा कि अब यह शरीर तो बेकार हो ही चुका है क्यों न भ खुद ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर ले।
अगले दिन जेल की कोठरी में बालक शंभू नारायण मृत पाया गया मात्र 14 वर्ष की आयु में अपना बलिदान देकर बालक ने आत्म बलिदान का अनूठा उदाहरण पेश किया।


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